स्मार्टफोन से जुटेगा डेटा, 14,618 करोड़ का बजट… जानें कैसी होगी देश की पहली डिजिटल जनगणना
भारत अगले साल पहली बार पूरी तरह डिजिटल जनगणना शुरू करेगा. इसमें 34 लाख प्रगणक अपने स्मार्टफोन से डेटा जुटाकर एक विशेष मोबाइल ऐप के जरिए सेंट्रल सर्वर पर अपलोड करेंगे. यह ऐप 2021 की जनगणना के लिए बना था, लेकिन अब इसमें तकनीकी सुधार कर इसे एंड्रॉयड और आईओएस के साथ कई भाषाओं में उपलब्ध कराया गया है ताकि काम सहज और सरल हो सके.
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देश में अगले साल से एक ऐतिहासिक काम शुरू होने जा रहा है. वो है भारत की जनगणना, जिसे अब तक कागज और रजिस्टर पर लिखा जाता था, इस बार पूरी तरह डिजिटल रूप में होगी. इस काम के लिए 34 लाख से ज़्यादा गणना कर्मियों को जिम्मेदारी दी जाएगी और खास बात यह है कि पहली बार वे अपने ही स्मार्टफोन से इस काम को अंजाम देंगे. यह बदलाव सिर्फ तकनीक का इस्तेमाल नहीं बल्कि भारत की डेटा प्रबंधन प्रणाली में एक बड़ी क्रांति माना जा रहा है. आइए जानते हैं इस डिजिटल जनगणना की खास बातें.
स्मार्टफोन और ऐप से होगा सारा काम
सूत्रों के मुताबिक, भारत के महापंजीयक (RGI) की देखरेख में तैनात किए गए पर्यवेक्षक और प्रगणक अपने एंड्रॉयड या आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम वाले फोन से जनगणना का डेटा इकट्ठा करेंगे. इसके लिए एक खास मोबाइल एप्लीकेशन तैयार किया गया है. यह ऐप अंग्रेजी के अलावा कई क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध होगा ताकि देश के हर कोने का गणना कर्मी इसे आसानी से इस्तेमाल कर सके. यह वही ऐप है जिसे मूल रूप से 2021 की जनगणना के लिए डेवलप किया गया था, लेकिन अब इसमें कई तकनीकी सुधार किए गए हैं. इसका मकसद यही है कि गणना कर्मी बिना किसी कठिनाई के लोगों की जानकारी लेकर सीधे सेंट्रल सर्वर पर डेटा अपलोड कर सकें.
सभी भवनों की जियो-टैगिंग
गौरतलब है कि डिजिटल जनगणना का विचार नया नहीं है. 2011 में हुई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना में भी गणना कर्मियों ने कागज़ का इस्तेमाल नहीं किया था. उस समय उन्हें टैबलेट दिए गए थे, जो भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने उपलब्ध कराए थे. लेकिन अब 2027 में पहली बार पूरी तरह से व्यक्तिगत स्मार्टफोन और मोबाइल ऐप के ज़रिए यह प्रक्रिया पूरी होगी. इस बार की जनगणना का एक और बड़ा बदलाव है – भवनों की जियो-टैगिंग. पहली बार देश के सभी आवासीय और गैर-आवासीय भवनों को डिजिटल मानचित्र पर दर्ज किया जाएगा. इससे यह साफ हो जाएगा कि किस इलाके में कितने घर, स्कूल, अस्पताल या अन्य भवन हैं. यह जानकारी न केवल जनगणना बल्कि शहरी योजना, आपदा प्रबंधन और विकास कार्यों में भी बेहद मददगार साबित होगी.
डेटा होगा तुरंत डिजिटल
जनगणना का सबसे अहम फायदा यह होगा कि पूरा डेटा कर्मियों के स्तर पर ही डिजिटल हो जाएगा. पहले अगर कागज़ पर जानकारी ली जाती थी, तो उसे बाद में कंप्यूटर में डालना पड़ता था, जिससे समय और मेहनत दोनों ज्यादा लगते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अगर किसी कारणवश कोई गणना कर्मी कागज़ पर डेटा लिखता भी है, तो उसे तुरंत वेब पोर्टल पर अपलोड करना होगा. यानी स्कैनिंग या डेटा एंट्री की दोहरी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. इससे जनगणना के नतीजे पहले की तुलना में जल्दी आ जाएंगे और आंकड़ों की सटीकता भी बढ़ जाएगी.
जनगणना का भारी-भरकम बजट
इस मेगा प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए सरकार ने बड़ा बजट तय किया है. भारत के महापंजीयक (RGI) ने जनगणना के लिए 14,618.95 करोड़ रुपये की मांग की है. इतना बड़ा बजट यह दिखाता है कि सरकार इस डिजिटल ट्रांजिशन को लेकर कितनी गंभीर है.
दो चरणों में पूरी होगी जनगणना
अगले साल शुरू होने वाली जनगणना दो चरणों में होगी. पहला चरण अप्रैल से सितंबर 2026 तक चलेगा, जिसमें मकान सूचीकरण यानी हाउस लिस्टिंग का काम होगा. दूसरा चरण फरवरी 2027 में शुरू होगा, जिसमें जनसंख्या गणना होगी. वहीं लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे ठंडे इलाकों में जनगणना का काम सितंबर 2026 में ही पूरा कर लिया जाएगा.
जनता को खुद गिनने का विकल्प
इस बार की जनगणना में एक और नया फीचर जोड़ा गया है, स्वयं गणना का विकल्प. यानी लोग चाहें तो अपनी जानकारी खुद भरकर ऑनलाइन जमा कर सकेंगे. यह कदम पारदर्शिता और सहभागिता की दिशा में बड़ा बदलाव माना जा रहा है. साथ ही, आगामी जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी, जिससे सामाजिक-आर्थिक योजनाओं और नीतियों को बनाने में आसानी होगी. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाला महापंजीयक कार्यालय इस पूरी प्रक्रिया की रियल टाइम निगरानी करेगा. इसके लिए एक खास वेबसाइट विकसित की जा रही है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि हर चरण पारदर्शी और सुरक्षित ढंग से पूरा हो.
क्यों है डिजिटल जनगणना ऐतिहासिक?
भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में जनगणना एक बड़ा काम होता है. इसमें लाखों कर्मियों की मेहनत, करोड़ों नागरिकों की भागीदारी और विशाल डेटा का प्रबंधन शामिल होता है. जब यह प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल हो जाएगी, तो न सिर्फ आंकड़े जल्दी उपलब्ध होंगे बल्कि नीतियां बनाने में भी समय की बचत होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल जनगणना भविष्य में भारत के विकास की दिशा तय करने में मील का पत्थर साबित होगी.
बताते चलें कि 2027 की जनगणना केवल लोगों की गिनती भर नहीं होगी बल्कि यह भारत के डिजिटल सफर में एक बड़ी छलांग होगी. स्मार्टफोन से डेटा संग्रह, भवनों की जियो-टैगिंग, स्वयं गणना का विकल्प और रियल टाइम निगरानी जैसी सुविधाएं इस जनगणना को अनोखा और ऐतिहासिक बनाएंगी.
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ऐसे में सरकार का 14,618 करोड़ रुपये का निवेश और 34 लाख कर्मियों की भागीदारी इस बात का संकेत है कि भारत अब डेटा आधारित नीति निर्माण के नए युग में प्रवेश कर रहा है. आने वाले समय में यह कदम देश के विकास की दिशा और रफ्तार दोनों तय करेगा.
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