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आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता! मालेगांव केस पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बड़ा बयान

साध्वी प्रज्ञा ने आतंकवाद का रंग हरा क्या बताया, एक नया विवाद खड़ा हो गया. अब आतंकवाद का रंग ढूंढा जा रहा है, जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सत्यता का जो आईना दिखाया है, वह जानने के लिए जुड़े रहिए धर्म ज्ञान के साथ.

17 साल बाद मालेगांव ब्लास्ट पर एनआईए कोर्ट का फ़ैसला क्या आया, भगवा आतंकवाद की पूरी स्क्रिप्ट फ़र्ज़ी निकली गई. फिर जैसे ही बतौर आरोपी 8 साल जेल काट चुकी साध्वी प्रज्ञा ने आतंकवाद का रंग हरा क्या बता दिया, एक नया विवाद खड़ा हो गया. आतंकवाद का रंग ढूंढा जा रहा है, जिस पर बोलते हुए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सत्यता का जो आईना दिखाया, वो जानने के लिए बने रहिए धर्म ज्ञान के साथ.

17 साल पहले महाराष्ट्र के मालेगांव में बम ब्लास्ट हुआ. 6 लोग मारे गए और 101 जख्मी हुए. इस ब्लास्ट के पीछे भगवा आतंकवाद नाम की स्क्रिप्ट लिखी गई. कांग्रेस की यूपीए वाली सरकार में भगवा आतंकवाद शब्द का आविष्कार हुआ. ये बताने की भरपूर कोशिश हुई कि भगवा आतंकवाद होता है. और आतंकवाद के सहारे भगवा को बदनाम करने के लिए जिन 11 लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें से एक नाम साध्वी प्रज्ञा का था. अब जब इस मामले में साध्वी प्रज्ञा बरी हो चुकी हैं, उन पर लगे सारे आरोप झूठे साबित हुए हैं. तो ऐसे में उन्होंने न सिर्फ अपनी इस जीत को हिंदुत्व की जीत से जोड़ा, बल्कि सनसनीखेज खुलासों के साथ आतंकवाद के रंग को हरा बता दिया. कोर्ट के फ़ैसले के बाद से ही साध्वी प्रज्ञा मीडिया की सुर्खियों में बनी हुई हैं. हाल ही में केस में बरी होने के बाद जब उनके गृह नगर भोपाल में उनका भव्य स्वागत किया गया, उस वक़्त उन्होंने आतंकवाद के रंग पर बोलते हुए एक नया विवाद खड़ा कर दिया. डंके की चोट पर साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि कौन कहता है कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता? आतंकवाद का रंग हरा होता है. हरे रंग के झंडे के नीचे आतंकवाद फैलाया जाता है. इतना ही नहीं, साध्वी प्रज्ञा ने पहलगाम हमले का हवाला देते हुए मुसलमानों को आतंकवाद से जोड़ दिया.

अब सवाल उठता है कि क्या एक विशेष वर्ग को टारगेट करने के लिए साध्वी प्रज्ञा ने आतंकवाद के रंग को हरा बताया. अगर आतंकी संगठनों के झंडे पर गौर करें, तो लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे कई इस्लामिक आतंकी संगठनों के झंडों में हरे रंग की प्रधानता ग़लती नहीं, बल्कि विशेष पहचान बन चुकी है. हिजबुल मुजाहिद्दीन का झंडा पूरी तरह हरे रंग का होता है, जिस पर सफेद अरबी में कुरान की आयतें लिखी होती हैं. वहीं लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद भी हरे झंडे या काले रंग में अरबी लिपि के साथ ‘इस्लामी जिहाद’ को दर्शाते हैं. अफगान तालिबान, अल-कायदा से लेकर बोको हराम तक इन सबके झंडों में भी यह पहचान देखी जा सकती है. साध्वी प्रज्ञा के इसी बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या आतंकवाद को धर्म से जोड़ना चाहिए. क्या आतंकवाद में रंग देखा जाना चाहिए. इन्हीं सवालों के बीच ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने न सिर्फ़ साध्वी प्रज्ञा बल्कि समाज को भी आईना दिखाने की कोशिश की है.

भगवा आतंक शब्द पर टिप्पणी करते हुए शंकराचार्य ने कहा,"आतंकवाद शब्द में रंग का कोई मतलब नहीं है. आतंकवाद तो आतंकवाद है, और इसके ख़िलाफ़ कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाई जानी चाहिए. जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसका फोटो भी ब्लैक एंड व्हाइट कर दिया जाता है, क्योंकि उसमें से रंग खत्म हो जाता है. और फिल्मों में भी फ्लैशबैक दिखाने के लिए काले रंग का प्रयोग किया जाता है. आतंकवाद में रंग खोजने वाले आतंकवाद के पक्षधर हैं."

शंकराचार्य के इस बयान से ये साफ़ हो जाता है कि आतंकवाद का ख़ुद का अपना कोई रंग नहीं है, क्योंकि आतंकवाद नाम का शब्द लोगों की ज़िंदगी से रंग को निचोड़ डालता है. बहरहाल, साध्वी प्रज्ञा की बयानबाज़ी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है. हम सभी जानते हैं कि आरोप के चलते साध्वी प्रज्ञा ने अपनी ज़िंदगी के नौ साल जेल में काटे और जैसा कि वो दावा करती हैं कि इन 9 सालों में उन्हें एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित किया गया. और इसी प्रताड़ना के बीच उन पर योगी बाबा को फँसाने का भी दबाव बनाया गया.

17 साल बाद मालेगांव ब्लास्ट को लेकर साध्वी प्रज्ञा ने जो खुलासा किया है, उसके बाद से सवाल उठने लगे हैं कि क्या भविष्य में भी योगी बाबा के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने की कोशिश होगी. बाकायदा नाम लेकर साध्वी प्रज्ञा आज की तारीख़ में ये दावा कर रही हैं."मैं गुजरात में रहती थी, इसलिए उन्होंने मुझसे प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेने को भी कहा. मैंने किसी का नाम नहीं लिया क्योंकि वे मुझे झूठ बोलने पर मजबूर कर रहे थे. मुझसे योगी आदित्यनाथ, मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का नाम लेने को भी कहा गया था. उन्होंने कहा, ‘ये नाम ले लो और हम तुम्हें नहीं मारेंगे.’"

गौर करने वाली बात ये है कि मालेगांव ब्लास्ट साल 2008 में हुआ था और उस वक़्त योगी नाम का सूरज भारतीय राजनीति में उदय हो रहा था. बतौर गोरखपुर से सांसद, योगी बाबा की हिंदुत्वादी छवि विपक्षी ताक़तों को अत्याधिक चुभती थी. पीएम मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार के साथ योगी बाबा का नाम जुड़ना ये दर्शाता है कि साल 2008 में ही विरोधियों ने भारतीय राजनीति में योगी के बढ़ते क़द को भांप लिया था. इसी कारण साध्वी प्रज्ञा के ज़रिए उन्हें गिराने का षड्यंत्र रचा गया.

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