करिंजेश्वर मंदिर: चार युगों का साक्षी शिव का धाम, आज भी मौजूद महाभारत के प्रमाण
मंदिर के इतिहास के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग से मौजूद है. दक्षिण कन्नड़ जिले के बंटवाल तालुका के करिंजा गांव में पहाड़ी की चट्टान पर बना करिंजेश्वर मंदिर बेहद खास है.
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हर मंदिर की अपनी पौराणिक कहानी और इतिहास होता है, जो उसे बाकी मंदिरों से अलग बनाता है. कोई मंदिर रामायण, तो कोई महाभारत काल से जुड़ा है, लेकिन कर्नाटक की पहाड़ी पर बना भगवान शिव का मंदिर चार युगों का साक्षी है.
करिंजेश्वर मंदिर बेहद खास है
मंदिर के इतिहास के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग से मौजूद है. दक्षिण कन्नड़ जिले के बंटवाल तालुका के करिंजा गांव में पहाड़ी की चट्टान पर बना करिंजेश्वर मंदिर बेहद खास है.
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत खतरनाक
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत खतरनाक और संकरा है. पहाड़ काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिनसे होते हुए पहले भगवान गणेश, फिर मां पार्वती और आखिर में पहाड़ की चोटी पर भगवान शिव का मंदिर आता है.
कुंड को लेकर ऐसी मान्यता
शिव मंदिर से पहले एक कुंड भी मौजूद है. माना जाता है कि जब पांडवों को प्यास लगी थी, तब भीम ने अपनी गदा से चट्टान में छेद कर पानी का झरना निकाला था. इस कुंड को लेकर मान्यता है कि इसका पानी अमृत है और यह किसी भी मौसम में नहीं सूखता है.
'अंगुष्ठ तीर्थ' और 'जानु तीर्थ' की मान्यता
इसके अलावा, जब भीम जमीन पर घुटनों के बल बैठे, तो उन्होंने अपने अंगूठे से 'अंगुष्ठ तीर्थ' और 'जानु तीर्थ' का निर्माण किया. इसके अलावा, अर्जुन ने एक सुअर पर बाण चलाकर 'हांडी तीर्थ' या 'वराह तीर्थ' का निर्माण किया था. 'अंगुष्ठ तीर्थ' और 'जानु तीर्थ' की मान्यता धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलती है, जिनका उपयोग पितरों के तर्पण या जल अर्पण के समय किया जाता है.
पांडव कुछ समय के लिए इसी स्थान पर ठहरे थे
मंदिर की पौराणिक कथा भी महाभारत काल में सुनने को मिलती है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडव कुछ समय के लिए इसी स्थान पर ठहरे थे. भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के लिए अर्जुन को महादेव की भक्ति कर पाशुपतास्त्र लाने का आदेश दिया था.
अर्जुन ने भगवान शिव के करिंजेश्वर रूप की पूजा की थी
इसी पहाड़ी पर बैठकर अर्जुन ने भगवान शिव के करिंजेश्वर रूप की पूजा की थी. अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव शिकारी का रूप लेकर अर्जुन से युद्ध करने आए थे. पहले तो अहंकार में आकर अर्जुन ने भगवान शिव से युद्ध किया लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि यह कोई आम शिकारी नहीं, बल्कि कोई दिव्य शक्ति है. अर्जुन के क्षमा मांगने के बाद भगवान शिव ने उन्हें प्रसन्न होकर पाशुपतास्त्र दिया था.
पहाड़ी पर आज भी कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जो युद्ध की गवाही देते हैं.
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