क्या कैलाश पर्वत खो रहा है अपना स्वरूप... चिंतित हैं शिव भक्त और पीएम मोदी!
5 साल बाद चीन की सारी अकड़ ढीली क्या हुई, 5 साल बाद कैलाश जाने का रास्ता क्या खुला और 5 साल बाद ड्रैगन की गर्दन शिव भक्त मोदी के हाथ में क्या आई. शिव भक्तों को त्रिलोक के स्वामी महादेव का खुद का आशियाना संकट में दिखा. देखिए धर्म ज्ञान पर.
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5 साल बाद चीन की सारी अकड़ ढीली क्या हुई, 5 साल बाद कैलाश जाने का रास्ता क्या खुला, और 5 साल बाद ड्रैगन की गर्दन शिव भक्त मोदी के हाथ में क्या आई. शिव भक्तों को त्रिलोक के स्वामी महादेव का खुद का आशियाना संकट में दिखा. हाल ही में कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौटे तीर्थयात्रियों ने दुनिया को कैलाश पर्वत की जो तस्वीर दिखाई है, उसके बाद से शिव भक्त पीएम मोदी भी चिंतित हैं. इस चिंता का कारण है कैलाश पर्वत के अस्तित्व पर ग्रहण लगा रही ग्लोबल वार्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन. अगर समय रहते इन गंभीर हालातों में बदलाव नहीं आता है, तो वो दिन भी दूर नहीं जब कैलाश पर्वत की अलौकिक दुनिया विश्व की आँखों से ओझल हो जाएगी.
शिव भक्तों के लिए कैलाश पर्वत क्या मायने रखता है, इसका अंदाज़ा इसी से लगाइए. यही वो दिव्य लोक है, जहां कैलाशवासी भगवान शिव अपने परिवार संग विद्यमान हैं. इसी कैलाश पर लंकापति रावण का अहंकार चूर हुआ था. कैलाश की इसी दुनिया में आज की मानसरोवर झील ब्रह्मा के मस्तिष्क की एक ऐसी रचना है, जो सर्द मौसम में भी नहीं जमती है. बाहरी तामझाम से मुक्त कैलाश की इस अलौकिक दुनिया में सभी धर्म एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं. क्योंकि यहीं पर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ को मोक्ष प्राप्त हुआ. यहीं आकर तिब्बती बौद्ध भिक्षु मिलारेपा ने वर्षों तक तपस्या की और यहीं आकर गुरु नानक ने ध्यान लगाया. यहाँ आकर शिव प्रेमियों को गहरी आध्यात्मिकता का अनुभव होता है. और हम ये कैसे भूल सकते हैं कि भगवान कुबेर की इसी नगरी में भगवान शिव ने स्वर्ग से उतरी माँ गंगा के विकराल वेग को अपनी जटाओं में धारण किया, जिसके बाद माँ गंगा का निर्मल रूप नज़र आता है. यहीं वो दिव्य स्थल है, जहां "ॐ" रूप में भगवान शंकर की पूजा होती है. कैलाश पर्वत शिव भक्तों की आस्था का जितना बड़ा केंद्र है, इसकी अद्भुत दुनिया वैज्ञानिकों के लिए उतनी ही रहस्यमय है. ब्रह्मांड के इस केंद्र बिंदु पर चुंबकीय वातावरण का एहसास, बाल और नाखून का सामान्य से अधिक तेजी से बढ़ना, कैलाश पर्वत के ऊपर आकाशीय चमक, कैलाश पर्वत की पिरामिडनुमा आकृति, डमरू संग "ॐ" की ध्वनि, और कैलाश पर्वत की चोटी पर आज तक किसी का न चढ़ पाना. इन रहस्यों से संपन्न कैलाश पर्वत की मिस्ट्री को दुनिया का कोई वैज्ञानिक सुलझा नहीं पाया है.
रहस्यों से भरी कैलाश पर्वत की दुनिया ऐसी है कि यहाँ कदम रखने से चीन कतराता है. अब आप इसे डर कहें या फिर नाकामी, आज तक चीन के कदम कैलाश पर्वत को नाप नहीं पाए हैं. हालांकि तिब्बत को हड़प चुका चीन कैलाश पर्वत की पवित्रता का ख़्याल रखता है. तभी तो उसने यहाँ तीर्थ यात्रियों को छोड़कर सभी प्रकार की चढ़ाई पर प्रतिबंध लगा रखा है. इस बार पीएम मोदी के आगे देर से ही सही, लेकिन चीन को न चाहकर भी घुटने टेकने पड़े हैं. या फिर यूं कहें कि जैसे ही भारत‑चीन के रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघली, 5 साल से बंद पड़ी कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू हो गई. पिछले पाँच साल से यात्रा में अड़ंगा डाल रहे चीन ने इस बार फाटक खोला और कैलाश मानसरोवर के मार्ग पर रेड कार्पेट बिछाया. 22 दिनों की इस यात्रा में इस बार 250 तीर्थयात्रियों ने हिस्सा लिया. 30 जून को 45 सदस्यों का पहला जत्था मानसरोवर यात्रा के लिए रवाना हुआ और जब इनकी वापसी हुई, तो शिव भक्त पीएम मोदी को कैलाश के अस्तित्व की चिंता सताने लगी. दरअसल, मानसरोवर यात्रा से लौटे पहले दल ने इस बात का खुलासा किया है कि कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्से में बिछी बर्फ की मोटी चादर इस बार ग़ायब दिखी. मतलब ये कि कैलाश पर्वत का दक्षिणी हिस्सा बर्फविहीन हो गया है. 2016 में जब आईटीबीपी के एडीजी संजय गुंज्याल कैलाश यात्रा पर गए थे, तब पर्वत के दक्षिणी हिस्से में बर्फ की मोटी चादर बिछी हुई थी, जो इस बार नज़र नहीं आई.
मतलब साफ है कि कैलाश पर्वत का बर्फीला स्वरूप बदल रहा है. इसके पीछे का कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है. कैलाश पर्वत की ऊंचाई करीब 21,778 फीट है, जिस कारण इसकी चोटी पर पूरे वर्ष बर्फ़ रहती है. लेकिन इस बार इसके दक्षिणी हिस्से में बर्फ़ गायब दिखी, जो चिंता का विषय है. कैलाश पर्वत से बर्फ़ का गायब होना इस बात का संकेत है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो पूरा का पूरा कैलाश पर्वत ख़तरे में आ जाएगा. शिव भक्त पीएम मोदी भी इस स्थिति से अवगत होंगे, और शायद यही कारण है कि कैलाश पर्वत से बर्फ़ का पिघलना उनके लिए भी चिंता का विषय है. बर्फ़ है पिघल रही और वह भी उस कैलाश पर्वत से, जो सदियों से बर्फ़ की मोटी चादर से ढका रहता है. क्या यह संकेत है विनाश का?
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