Advertisement

अपरा एकादशी आज, क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत की विधि? जानिए

आज अपरा एकादशी की पूजा है. इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है. व्रत का पारण 24 मई की सुबह 05.26 मिनट से 08:11 मिनट के बीच किया जा सकता है.

अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहते है. यह एकादशी पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए फलदायक मानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, और तीर्थ स्नान के बराबर फल प्राप्त होता है. जो भी मनुष्य पापों से मुक्ति और धार्मिक शुद्धता की कामना करता हैं, उनके लिए यह एकादशी बहुत खास और प्रभावी मानी जाती है. 

तिथि और शुभ मुहूर्त 
हिंदू पंचांग के अनुसार, अपरा एकादशी तिथि 22 मई को रात 01:12 मिनट से लेकर 23 मई को रात 10:29 मिनट तक रहने वाली है. इसलिए अपरा एकादशी का व्रत शुक्रवार, 23 मई यानी को रखा जाएगा. व्रत का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04.04 मिनट से 04:45 मिनट तक रहेगा. पूजा-पाठ के लिए यह समय बहुत शुभ माना गया है. व्रत का पारण 24 मई की सुबह 05.26 मिनट से 08:11 मिनट के बीच किया जा सकता है.

अपरा एकादशी व्रत की विधि 
अपरा एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें. फिर साफ़-कपड़े पहनकर भगवान विष्णु का मनन करें. इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है. पूजा के लिए एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का स्वच्छ कपड़ा बिछाएं. फिर भगवान विष्णु की मूर्ती या तस्वीर को उस पर स्थापित करें. इस व्रत में भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है. सबसे पहले उनकी प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं या अर्पित करें. इसके बाद दीप प्रज्वलित करें. भगवान विष्णु को अक्षत, पुष्प, फल, तुलसी दल, पंचमेवा, धूप और नैवेद्य अर्पित करें. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें. "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी किया जा सकता है.

अपरा एकादशी व्रत का नियम
अपरा एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. बेहतर होगा कि इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाए. इस व्रत में भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है. इस दिन तामसिक आहार और बुरे विचार से दूर रहें. भगवान कृष्ण की उपासना के बिना दिन की शुरुआत न करें. मन को ज्यादा से ज्यादा ईश्वर में लगाए रखें. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उपवास न रखें. केवल प्रक्रियाओं का पालन करें. इस दिन पशुओं के साथ क्रूरता न करें. किसी को अपशब्द न कहें. सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिण जरूर दें. अपरा एकादशी का दिव्य उपायश्रीहरि कृपा के सबसे सरल उपाय भगवान श्री हरि की प्रतिमा को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं भगवान को फल, फूल, केसर, चंदन और पीला फूल चढ़ाएं पूजन के बाद श्री हरि की आरती करें ''ऊं नमो नारायणाय या ऊं नमो भगवते वासुदेवाय'' मंत्र जपें इसके बाद भगवान से अपनी मनोकामना कहें.

अपरा एकादशी व्रत कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार, महीध्वज नाम का एक राजा था. उसका एक छोटा भाई था जो बेहद क्रूर और अधर्मी था. वो अपने बड़े भाई यानी की महीध्वज को मारना चाहता था. इसलिए उसने रात के समय महीध्वज की हत्या कर शव को पीपल पेड़ के नीचे गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण महीध्वज पीपल के पेड़ पर ही रहने लगा और वहीं पर महीध्वज उत्पात मचाने लगा.
कुछ समय बाद एक बार उस पेड़ के पास से धौम्य ऋषि जा रहे थे. तभी उन्होंने उस आत्मा को देखा. इसके बाद उसे ऋषि ने परलोक उपदेश दिया. ॠषि ने स्वयं प्रेत योनि से मुक्ति के लिए ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया. ॠषि के द्वारा व्रत करने से उस आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई, जिसके बाद उनसे ॠषि का धन्यवाद किया और स्वर्ग को चला गया.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement

LIVE
अधिक →
अधिक →