भाषा और पहचान : बल्ती भाषा, तिब्बती भाषा की एक बोली है. यह समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान को सहेज कर रखता आया है.
जीवशैली : बल्ती लोग कठोर मौसम में भी खेती, पशुपालन और हस्तशिल्प से जीवन यापन करते है. इनका खानपान और पहनावा मौसम के अनुसार खास रुप से ढला होता है.
त्योहार और परंपराएं : बल्ती समाज मे तिब्बती और इस्लामी परंपराओं का अनोखा संगम देखने को मिलता है. नोरोज़, ईद और लोसार यहाँ के प्रमुख उत्सव है.
इतिहास और विरासत : बल्टी समुदायल का इतिहास बल्तिस्तान से जुड़ा है, जो आज पाकिस्तान अधिकृत गिलगित-बल्तिस्तान मे है. 1947 के बाद ये समुदाय भारत में भी बस गया.
कला और हस्तशिल्प : बल्ती कारीगर ऊन से गर्म कपड़े, कालीन और पारंपरिक टोपी ( ग्यापशो ) बनाते है. इनके कलाकारी में प्रकृति और तिब्बती संस्कृति की झलक मिलती है.
खास व्यंजन : बल्ती खाने में थुकपा ( सुप ), स्कियु ( पास्ता जैसा व्यंजन ) और चाय ( बटर टी ) प्रमुख है. यहाँ सादा, कम मसाले, कम तेल, लेकिन बहुत पौष्टिक खाना बनाया जाता है.
मकान और वास्तुकला : बल्ती घर मिट्टी और पत्थर से बने होते है - गर्मी बनाए रखने के लिए खास डिजाइन . छतें समतल होती हैं और घरों में लकड़ी का सुंदर काम देखने को मिलता है.
महिलाओं की भुमिका : बल्ती महिलाएं घर, खेती और समाज - तीनों मे महत्वपुर्ण भुमिका निभाती हैं. इनकी पारंपरिक पोशाकें रंगीन और कार्यात्मक होती हैं, जो कठोर मौसम का सामान कर सकें.
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