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Google बनाएगा अंतरिक्ष में डेटा सेंटर! सुंदर पिचाई का ‘Project Suncatcher’ बना चर्चा का विषय

गूगल का यह कदम दुनिया के लिए एक नई दिशा दिखाता है. अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो भविष्य में धरती के बजाय अंतरिक्ष में काम करने वाले कंप्यूटर सिस्टम्स हमारी जिंदगी का हिस्सा बन सकते हैं. यह तकनीक न केवल ऊर्जा की बचत करेगी, बल्कि धरती पर प्रदूषण कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगी.

Image Source: Social Media

दुनिया की बड़ी टेक कंपनियां अपने डेटा सेंटर्स को लेकर नए-नए प्रयोग कर रही हैं. कोई धरती के नीचे बना रहा है, तो कोई समुद्र के अंदर. लेकिन अब गूगल ने इससे भी एक कदम आगे बढ़कर ऐसा काम किया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. गूगल अब अंतरिक्ष (Space) में AI कंप्यूटिंग सिस्टम बनाने की तैयारी कर रहा है, जिसे आगे चलकर डेटा सेंटर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा.

सफल टेस्टिंग से खुला नया रास्ता

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने बताया कि कंपनी ने अंतरिक्ष के लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) में एक सफल टेस्टिंग की है. इस टेस्ट में गूगल ने अपनी Trillium-Generation Tensor Processing Units (TPUs) चिप्स का उपयोग किया. यह टेस्ट वहां की रेडिएशन और मुश्किल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया था. नतीजा बेहद सकारात्मक रहा, इन चिप्स पर किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ. इसका मतलब यह है कि गूगल की तकनीक अंतरिक्ष जैसी कठिन जगह पर भी काम कर सकती है.

क्या है यह प्रोजेक्ट ‘सनकैचर’?

गूगल ने इस प्रोजेक्ट का नाम रखा है “सनकैचर” (Suncatcher Project). इसका मुख्य उद्देश्य सूरज की रोशनी से ऊर्जा (Solar Power) लेकर अंतरिक्ष में AI कंप्यूटिंग सिस्टम को चलाना है. यानी धरती से बाहर, आसमान में तैरता हुआ ऐसा सिस्टम जो सूरज की रोशनी से खुद को पावर देगा और भारी-भरकम डेटा प्रोसेसिंग कर सकेगा। यह प्रोजेक्ट गूगल की अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक माना जा रहा है.

TPU क्या होता है? सुंदर पिचाई ने समझाया

सुंदर पिचाई के अनुसार, TPU (Tensor Processing Unit) खास तरह की कंप्यूटर चिप होती है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से जुड़ी गणनाओं को बहुत तेज़ और सटीक बनाती है. ये वही चिप्स हैं जो ChatGPT, Gemini या Claude जैसे बड़े AI मॉडल्स को चलाने में काम आती हैं. इन चिप्स को रेडिएशन और बदलते तापमान में भी टेस्ट किया गया और ये बिल्कुल सही तरीके से काम करती रहीं. इससे यह साबित हुआ कि गूगल की यह तकनीक स्पेस के कठिन माहौल में भी भरोसेमंद है.

अंतरिक्ष में डेटा सेंटर बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

आज के दौर में AI सिस्टम्स को चलाने के लिए बहुत अधिक बिजली की जरूरत होती है. अगर यह बिजली कोयला, गैस या डीजल से बनाई जाए, तो इससे प्रदूषण बहुत बढ़ेगा। इसलिए गूगल ने एक ऐसा रास्ता चुना है जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे. कंपनी ने तय किया कि वह अंतरिक्ष में सोलर पैनल्स लगाएगी और सूर्य की ऊर्जा से डेटा सेंटर चलाएगी. इससे पृथ्वी पर बिजली की खपत घटेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.

कहां से मिली गूगल को प्रेरणा?

गूगल को इस प्रोजेक्ट की प्रेरणा उसके ही पुराने Moonshot Project से मिली, जिसे अब Alphabet की X डिविजन कहा जाता है. यह डिविजन ऐसे इनोवेशन पर काम करती है जो आम सोच से काफी आगे होते हैं, जैसे उड़ने वाली कारें, इंटरनेट से जुड़ी गुब्बारे और अब अंतरिक्ष में डेटा सेंटर. “सनकैचर” उसी सोच का अगला कदम है.

2027 तक लॉन्च होगा पहला सैटेलाइट

सुंदर पिचाई ने बताया कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2027 की शुरुआत तक गूगल Planet कंपनी के साथ मिलकर अपने दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट्स लॉन्च करेगा. ये सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में जाकर यह साबित करेंगे कि सोलर पावर से चलने वाला AI सिस्टम सच में संभव है या नहीं. अगर यह सफल रहा, तो आगे आने वाले समय में गूगल अंतरिक्ष में अपने पहले AI डेटा सेंटर्स बना सकेगा.

गूगल का यह कदम दुनिया के लिए एक नई दिशा दिखाता है. अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो भविष्य में धरती के बजाय अंतरिक्ष में काम करने वाले कंप्यूटर सिस्टम्स हमारी जिंदगी का हिस्सा बन सकते हैं. यह तकनीक न केवल ऊर्जा की बचत करेगी, बल्कि धरती पर प्रदूषण कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगी.

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