"भगवान कुछ नहीं होते, क्या किसी ने भगवान को देखा है? पढ़नी है तो केवल उर्दू पढ़ो…" मुस्लिम टीचर पर छात्रों ने लगाए गंभीर आरोप
छात्रों का आरोप है कि टीचर सलाउद्दीन,उन्हीं छात्रों को ही पढ़ाते थे जो उर्दू पढ़ने के लिए तैयार होते थे. बाकी बच्चों की अनदेखी की जाती थी. इसके अलावा भगवान और मंदिर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के भी आरोप लगे हैं. एक छात्र ने कहा कि टीचर कहते हैं कि "भगवान कुछ नहीं होते, क्या किसी ने भगवान को देखा है?"
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बिजनौर : उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक सरकारी कंपोजिट स्कूल के मुस्लिम प्रिंसिपल को कथित तौर पर धार्मिक भेदभाव और उर्दू भाषा थोपने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है. यह मामला तब सामने आया जब छात्रों ने स्कूल के बाहर प्रदर्शन किया और सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल हुआ.
पूरा मामला बिजनौर के हरवंपुर धारम गांव स्थित एक कंपोजिट विद्यालय का है, जहां प्रिंसिपल मोहम्मद सलाउद्दीन पर हिंदू छात्रों को जबरदस्ती उर्दू पढ़ाने, आपत्तिजनक धार्मिक टिप्पणियां करने और पक्षपात का आरोप लगा है.
छात्रों के आरोप
कुछ छात्रों ने दावा किया कि सलाउद्दीन उन बच्चों को ही प्राथमिकता से पढ़ाते थे जो उर्दू पढ़ने के लिए तैयार होते थे. अन्य छात्रों की अनदेखी की जाती थी. छात्रों का यह भी आरोप है कि उर्दू पढ़ने से इनकार करने पर उन्हें धमकाया जाता था, और कभी-कभी अन्य छात्रों से उनकी पिटाई करवाई जाती थी.इसके अलावा भगवान और मंदिर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के भी आरोप लगे हैं. एक छात्र ने कहा कि टीचर कहते हैं कि "भगवान कुछ नहीं होते, क्या किसी ने भगवान को देखा है?" जिसके के बाद मुस्लिम टीचर की इस टिप्पणी को लेकर भी छात्रों और अभिभावकों में गुस्सा देखने को मिला.
प्रशासन की कार्रवाई
मामले के सामने आने के बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) योगेन्द्र कुमार ने जांच के आदेश दिए. खंड शिक्षा अधिकारी इंद्रपाल सिंह की रिपोर्ट में छात्रों और अभिभावकों के बयान के आधार पर आरोपों की पुष्टि हुई.
इसके बाद BSA ने मोहम्मद सलाउद्दीन को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और उन्हें प्राथमिक विद्यालय, जहानाबाद खोबड़ा से संबद्ध कर दिया गया है.
BSA योगेन्द्र कुमार ने कहा "विद्यालय में किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव सहन नहीं किया जाएगा. एक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह सभी बच्चों को समान रूप से शिक्षा दे, न कि किसी खास समुदाय के प्रति झुकाव दिखाए."
क्या उर्दू सिर्फ एक धार्मिक भाषा है?
इस घटना ने कई संवेदनशील और जरूरी सवाल भी खड़े किए हैं क्या उर्दू भाषा का संबंध केवल एक धर्म से है? अगर एक शिक्षक ने उर्दू पढ़ाने की सलाह दी, तो क्या यह धार्मिक भावना भड़काने की श्रेणी में आता है?
शिक्षा विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि किसी भाषा को धर्म से जोड़ना खतरनाक प्रवृत्ति है. उर्दू भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है और उसे पढ़ाना अपराध नहीं माना जा सकता. जब तक उसमें किसी भी तरह का जबरदस्ती या धार्मिक एजेंडा न हो.
स्थानीय प्रतिक्रिया
कुछ अभिभावकों का कहना है कि बच्चों को लंबे समय से शिक्षक के रवैये को लेकर परेशानी थी, लेकिन शिकायत दर्ज करने का कोई मंच नहीं मिल पा रहा था. अब प्रशासन की कार्रवाई से उन्हें राहत मिली है.
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स्थानीय अभिभावक रोहिताश सिंह और शिवम ने बताया "हमने कई बार बच्चों से शिकायतें सुनी थीं, लेकिन इस बार बच्चों ने खुद आवाज़ उठाई और सोशल मीडिया पर मामला उछलने के बाद प्रशासन हरकत में आया."
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