किसी परिजन की मृत्यु के बाद पहला श्राद्ध उनकी मृत्यु की तिथि से बारहवें दिन या अगले वर्ष उसी तिथि को किया जाता है. इसलिए इसे वार्षिक श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है.
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श्राद्ध का समय हमेशा पितृ पक्ष या मृत्यु की तिथि के आधार पर निर्धारित होता है. इस दिन पंडित द्वारा विधिवत् पिंडदान और तर्पण करना आवश्यक माना जाता है.
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श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत पुण्यकारी होता है. साथ ही, कौए, गाय, कुत्ते और पीपल वृक्ष को अन्न अर्पित करने की परंपरा है.
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मान्यता है कि इन कर्मकांडों से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलती है.
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इसके अलावा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को इस दिन सात्त्विक जीवनशैली और भोजन का पालन करना चाहिए.
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