मोक्ष नगरी के नाम से जानी जाने वाली काशी गंगा नदी के तट पर स्थित है.
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मान्यता है कि यहां जिसकी भी मृत्यु हो जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए यहां कई ऐसे श्मशान घाट हैं जहां 24 घंटों लाशें जलती रहती हैं.
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लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी में आज भी गरुड़ पुराण के नियम लागू होते हैं.
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आज भी काशी में ऐसी 5 प्रकार की लाशें हैं जिन्हें जलाने पर पाबंदी है.
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काशी में 11 साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं जलाया जाता है. यहां बच्चे को थल समाधि दी जाती है. बच्चे के जनेऊ संस्कार होने के बाद ही उसको जलाया जाता है.
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जिस इंसान की मृत्यु सांप के काटने के कारण हुई हो उसे भी काशी में नहीं जलाया जाता है. मान्यता है कि ऐसे व्यक्तियों के शरीर में 21 दिनों तक सूक्ष्म प्राण होते हैं.
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प्रेग्नेंट महिलाओं का शव भी काशी में जलाना वर्जित है. क्योंकि अगर ऐसा किया जाता है तो उसके पेट में पल रहा भ्रूण पेट फटने के कारण बाहर आ सकता है. इसलिए इनका शव भी काशी में नहीं जलाया जाता है.
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अगर किसी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो उसे काशी में नहीं जलाया जाता है, ऐसा करने से बैक्टीरिया हवा में फैल सकता है और दूसरे व्यक्तिओं के संक्रमित होने का खतरा हो सकता है.
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काशी में साधु-संतों की लाशों को भी नहीं जलाया जाता है इन्हें यहां जल समाधि दी जाती है.