हरियाली तीज श्रावण मास में आने वाला विशेष व्रत है. यह सौभाग्य, प्रेम और नारी शक्ति का प्रतीक पर्व है. इस दिन महिलाएं शिव-पार्वती के मिलन की कथा याद करती हैं.
क्यों कहते हैं ‘हरियाली’ तीज? सावन में प्रकृति हरियाली से भर जाती है. इस माह की तृतीया को मनाई जाती है हरियाली तीज. पेड़-पौधे, झूले, गीत और श्रृंगार – सबमें छाई होती है हरियाली.
पार्वती की कठोर तपस्या : मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तप किया. कठोर साधना और दृढ़ निष्ठा से उन्होंने शिव को प्रसन्न किया. तब जाकर शिव ने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया.
शिव-पार्वती का मिलन : तीज का दिन शिव-पार्वती के विवाह का दिन माना जाता है. यह व्रत स्त्रियों के अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन गया. हरियाली तीज का व्रत उसी स्मृति को सम्मान देता है.
व्रत की विधि और नियम : स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में कथा सुनती हैं. सोलह श्रृंगार कर के मां पार्वती की पूजा करती हैं. व्रत प्रेम, धैर्य और नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है.
झूला, गीत और उत्सव : महिलाएं पेड़ों पर झूले डालती हैं और लोकगीत गाती हैं. ‘सावन की मल्हारें’ तीज की रौनक बढ़ाती हैं. यह पर्व नारी के उल्लास, प्रेम और सौंदर्य का उत्सव है.
हरियाली तीज का संदेश : हरियाली तीज सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं, एक प्रेरणा है. यह नारी की शक्ति, श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है. शिव-पार्वती का अटूट प्रेम आज भी आदर्श बना हुआ है.