हर साल आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस बार योगिनी एकादशी 21 जून को पड़ रही है.
हर साल आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस बार योगिनी एकादशी 21 जून को पड़ रही है.
ऐसी मान्यता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को 88 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्यफल प्राप्त होता है. तो चलिए जानते है पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व
ऐसी मान्यता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को 88 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्यफल प्राप्त होता है. तो चलिए जानते है पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व
शुभ मुहूर्त : हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून को सुबह 7 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और समापन 22 जून को सुबह 4 बजकर 27 मिनट पर होगा. इस व्रत का पारण 22 जून को दोपहर 1 बजकर 47 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 35 मिनट पर होगा.
शुभ मुहूर्त : हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून को सुबह 7 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और समापन 22 जून को सुबह 4 बजकर 27 मिनट पर होगा. इस व्रत का पारण 22 जून को दोपहर 1 बजकर 47 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 35 मिनट पर होगा.
पूजा विधि: सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें. फल फूल अर्पित करें और श्रद्धा के साथ उनकी आरती करें. गुड-चना का भी प्रसाद चढ़ाएं. इस पूजा से भगवान विष्णु आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश करेंगे. वहीं, माता लक्ष्मी आपके धन के भंडार को भी भरेंगी.
पूजा विधि: सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें. फल फूल अर्पित करें और श्रद्धा के साथ उनकी आरती करें. गुड-चना का भी प्रसाद चढ़ाएं. इस पूजा से भगवान विष्णु आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश करेंगे. वहीं, माता लक्ष्मी आपके धन के भंडार को भी भरेंगी.
महत्व: जो भक्त योगिनी एकादशी का व्रत रखते हैं उनके सारे पाप मिट जाते हैं. योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद नर्क के कष्टों से मुक्ति मिलती है. भक्तों को यमदूतों के बजाय देवदूत आकर स्वर्ग की ओर ले जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कथा- प्राचीन समय में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के महल में हेम नामक एक माली रहता था. उसका काम भगवान शिव की पूजा के लिए मानसरोवर से फूल लाना था. एक दिन, अपनी पत्नी के साथ समय बिताने के कारण वह देर से फूल लेकर दरबार में पहुंचा. इससे क्रोधित होकर राजा कुबेर ने उसे कोढ़ रोग का श्राप दे दिया…
श्राप के कारण हेम माली भटकने लगा और एक दिन मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया. ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. इस व्रत के प्रभाव से हेम का कोढ़ ठीक हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई.
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