पुगा घाटी लद्दाख के चांगथांग क्षेत्र में स्थित है, त्सो मोरीरी झील के पास. यह स्थान समुद्र तल से लगभग 4400 मीटर की ऊँचाई पर बसा है. चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियाँ, लेकिन ज़मीन से उठती भाप और गर्म पानी के झरने — यह दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं लगता हैं.
पुगा घाटी लद्दाख के चांगथांग क्षेत्र में स्थित है, त्सो मोरीरी झील के पास. यह स्थान समुद्र तल से लगभग 4400 मीटर की ऊँचाई पर बसा है. चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियाँ, लेकिन ज़मीन से उठती भाप और गर्म पानी के झरने — यह दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं लगता हैं.
पुगा घाटी को भारत की सबसे प्रमुख जियोथर्मल एक्टिविटी ज़ोन के रुप में जाना जाता हैं. यहाँ धरती के भीतर की गर्मी सतह पर महसूस होती है. जैसे उबलते पानी के सोते, भाप धोड़ती दरारें, सल्फर की महक वाली मिट्टी और रंग-बिरंगे खनिज युक्त क्षेत्र.
पुगा घाटी को भारत की सबसे प्रमुख जियोथर्मल एक्टिविटी ज़ोन के रुप में जाना जाता हैं. यहाँ धरती के भीतर की गर्मी सतह पर महसूस होती है. जैसे उबलते पानी के सोते, भाप धोड़ती दरारें, सल्फर की महक वाली मिट्टी और रंग-बिरंगे खनिज युक्त क्षेत्र.
पुगा घाटी को केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन भारत की पहली जियोथर्मल ऊर्जा उत्पादन साइट के रूप में विकसित करने की योजना बना रहे हैं. इससे स्थानीय ऊर्जा ज़रूरतें पूरी होंगी और भविष्य में यह साफ-सुथरे ऊर्जा स्रोतों का एक उदाहरण बनेगी.
पुगा घाटी को केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन भारत की पहली जियोथर्मल ऊर्जा उत्पादन साइट के रूप में विकसित करने की योजना बना रहे हैं. इससे स्थानीय ऊर्जा ज़रूरतें पूरी होंगी और भविष्य में यह साफ-सुथरे ऊर्जा स्रोतों का एक उदाहरण बनेगी.
बर्फ और आग का अद्भुत संगम : यहाँ आने पर पर्यटक देखते हैं कि बर्फीली हवाओं के बीच, ज़मीन से भाप उठती है. पानी लगातार 80–100°C पर उबलता है. कीचड़ अपने आप उबलता है और सल्फर और खनिजों की परतें अलग-अलग रंगों में दिखती हैं.
बर्फ और आग का अद्भुत संगम : यहाँ आने पर पर्यटक देखते हैं कि बर्फीली हवाओं के बीच, ज़मीन से भाप उठती है. पानी लगातार 80–100°C पर उबलता है. कीचड़ अपने आप उबलता है और सल्फर और खनिजों की परतें अलग-अलग रंगों में दिखती हैं.
पुगा घाटी तक कैसे पहुँचे? सबसे पहले आपको लेह पहुँचना होगा ( हवाई मार्ग/सड़क से ). फिर सड़क मार्ग से उपशी – चुमाथांग – त्सो मोरीरी – पुगा. कुल दूरी लेह से लगभग 180–200 किमी हैं. रास्ता कठिन लेकिन दृश्यों में भरपूर होगा.
कब जाएं? अप्रैल से सितंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है. इस दौरान मौसम अनुकूल रहता है और रास्ते खुले होते हैं. सर्दियों में क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है, लेकिन कुछ स्प्रिंग्स तब भी सक्रिय रहते हैं.
पर्यटकों के लिए ज़रूरी सुझाव : यह क्षेत्र सीमांत है, इसलिए कभी-कभी इनर लाइन परमिट की आवश्यकता हो सकती है. ऊँचाई अधिक है, इसलिए उच्च शारीरिक सहनशीलता ज़रूरी है. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना सख्त वर्जित है और सल्फर की गंध कुछ लोगों को परेशान कर सकती है, मास्क साथ रखें.
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