‘लोगों के लिए लागू करें नेशनल इमरजेंसी’ सुप्रीम कोर्ट में PM मोदी के दूत ने क्यों लगा दी बड़ी गुहार?
धुएं से भरी दिल्ली NCR की हवा लोगों की उम्र कम कर रही है. हाल ही में हुए State of Global Air report सर्वे में बताया गया कि पिछले कुछ साल में प्रदूषण से देश के लाखों लोगों ने जान गंवाई है.
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राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों की दमघोंटू हवा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें कोर्ट से प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने चिंता जताते हुए प्रदूषण से पैदा हुए हालातों को नेशनल हेल्थ इमरजेंसी लागू करने की भी मांग की.
धुएं से भरी दिल्ली NCR की हवा लोगों की उम्र कम कर रही है. हाल ही में हुए State of Global Air report सर्वे में बताया गया कि पिछले कुछ साल में प्रदूषण से देश के लाखों लोगों ने जान गंवाई है. बच्चों और बुजुर्गों पर प्रदूषण का खतरनाक असर पड़ रहा है. इसी पर चिंता जताते हुए ल्यूक क्रिस्टोफर काउंटिन्हो ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. ल्यूक क्रिस्टोफर खुद PM मोदी के फिट इंडिया मूवमेंट के वेलनेस चैंपियन रहे हैं.
याचिका में क्या कहा गया?
ल्यूक क्रिस्टोफर ने अपनी याचिका में कहा कि, देश में वायु प्रदूषण का स्तर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के अनुपात में पहुंच गया है. केेवल दिल्ली में ही करीब 22 लाख स्कूली बच्चों को फेफड़ों में इतना नुकसान हो चुका है कि उनकी रिकवरी मुश्किल है. सरकारी और मेडिकल स्टडी में भी इसकी पुष्टि हुई है. ऐसे में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल लागू करने की मांग की. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि ये कदम ग्रामीण से लेकर शहरों तक लोगों को प्रदूषण के गंभीर खतरे से बचा सकता है.
याचिका में कहा गया कि, पॉलिसी बनने के बावजूद, ग्रामीण और शहरी भारत के बड़े हिस्से में हवा की गुणवत्ता लगातार खराब बनी हुई है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि, कई इलाकों में हालात तो बदतर हैं.
दिल्ली के अलावा इन शहरों में भी बिगड़े हालात
याचिका में न केवल दिल्ली NCR बल्कि पूरे देश की खराब हवा पर चिंता जताई गई. इसमें बताया गया कि, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु में PM 2.5 और PM10 जैसे प्रदूषक तत्व सीमाओं से ज्यादा है. ल्यूक क्रिस्टोफर ने ध्यान दिलाया कि, वायु अधिनियम 1981 और संबंधित कानूनों के तहत रेगुलेटरी एटमॉस्फीयर लगातार कमजोर होता जा रहा है. उन्होंने कहा, दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है. फिर भी वायु अधिनियम के तहत एक भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया.
GRAP की देरी पर उठाए सवाल
ल्यूक क्रिस्टोफर ने GRAP नियमों को लागू करने में देरी और लापरवाही की ओर भी इशारा किया. उन्होंने कहा, GRAP को हवा की गुणवत्ता गंभीर होने पर इमरजेंसी में राहते देने के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन अक्सर इसे लागू करने में देरी की जाती है. इसके अलावा प्रदूषण कंट्रोल करने के बाकी उपायों को अपनाने में भी ढील बरती जाती है. जैसे फॉग स्प्रेयर, एंटी-स्मॉग गन और आर्टिफिशियल बारिश. क्रिस्टोफर ने कहा, ये केवल आश्वासन के लिए हैं राहत के लिए नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा था जवाब
दिल्ली की दमघोंटू हवा पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी चिंता जताई थी. कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग यानी CAQM को हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिेए थे. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच एमसी मेहता की बेंच ने की. दिवाली के बाद से ही राजधानी में प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना हुआ है. कई जगहों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के पार चला गया है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को फटकार लगी है.
कोर्ट ने AQI मॉनिटरिंग स्टेशनों की निगरानी के निर्देश दिए हैं. SC में सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह ने कोर्ट मॉनिटरिंग स्टेशन के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कोर्ट में बताया कि, दिवाली के दिन 37 में से सिर्फ 9 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन ही वर्किंग थे. उन्होंने सवाल उठाए कि, अगर मॉनिटरिंग स्टेशन काम नहीं करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) कब लागू करना है? CAQM को स्पष्ट डेटा और एक्शन प्लान पेश करने का निर्देश दिए जाएं.
कोर्ट ने सरकार से पूछा- आपने क्या किया?
बेंच ने CAQM से पूछा कि दिल्ली-NCR में पॉल्यूशन को गंभीर स्तर पर पहुंचने से रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं? कोर्ट ने जोर दिया कि, पॉल्यूशन के गंभीर स्तर तक पहुंचने का इंतजार न किया जाए बल्कि समय रहते कदम उठाए जाएं. बेंच ने ये भी आदेश दिया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ज्यादा संख्या वाले इलाकों से मिट्टी और पानी के नमूने जांच के लिए भेजें.
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